आयुर्वेद में टीकाकरण :
आज के समय में आधुनिक टीकाकरण (vaccination) पर कई मत व तर्क -वितर्क प्रस्तुत हो रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों, राष्ट्रीय सरकारों व निजी कंपनियों के टीकों की सूची निरंतर बढ़ रही है। अन्य कई तरह की प्रचलित और दोषपूर्ण मान्यताओं की तरह यह मान्यता भी प्रचलित है कि आज हम जो ‘स्वस्थ’ हैं उसका एक बड़ा कारण हमारा बाल्यकाल में हुआ टीकाकरण है। ये मान्यता प्रामाणिक है या नहीं, टीकाकरण आवश्यक है या नहीं और ऐसे अनेक प्रश्नों के उत्तर ढूँढने से पहले यह उपयुक्त है कि हम टीकाकरण के आधुनिक विज्ञान को समझें और आयुर्वेद के सिद्धान्त और आयुर्वेद का विज्ञान टीकाकरण के क्या उपाय बताता है यह जानें!

वर्तमान अथवा पूर्व काल के रोगों के लिए इलाज होता है और भविष्य के रोगों से बचने के लिए वैक्सीनेशन होता है। भविष्य में आने वाले देश प्रभावज, काल प्रभावज और संसर्ग प्रभावज रोगों (effective for a region, era or contagious infection) से बचने के लिए वैक्सीनशन का प्रारूप या अवधारणा (concept) है। जब महामारी जैसे गंभीर रोग, जैसे चेचक, फैलते हैं तब उसी काल में उसी देश में प्रतिविष चिकित्सा वैक्सीनेशन प्रतिकार के लिए दिया जाता है। किन्तु वह सब काल के लिए और सब देश के लिए उपयुक्त नहीं होता है। आधुनिक विज्ञान या वैज्ञानिक उसे सब देश व सब काल के लिए लागू करना चाहते हैं, यह आयुर्वेद के सिद्धांत के विपरीत है।

आधुनिक विज्ञान के टीकाकरण में विभिन्न रोगों से बचने के लिए और उनके प्रतिरोधक कोष(anti- bodies) बनाने के लिए तत तत रोगों के निष्क्रिय जीवाणु को शरीर में डाला जाता है। ये मानकर कि भविष्य में उसके अनुरूप वायरस आए तो उसके सामने ये निष्क्रीय कोष सक्रिय होकर इससे लड़ेगा। किन्तु जब किसी रोग का विषाणु या वायरस नहीं आएगा तो उस परिस्थिति में निष्क्रिय रहे हुए वायरस की स्थिति भविष्य में क्या होगी यह एक ज्वलंत प्रश्न है! वो वायरस ख़ुद सक्रिय होकर यदि समान वायरस की संख्या बढ़ाएगा तो शरीर के लिए हानिकारक होगा, उसका कोई उत्तर वैक्सीन के कॉन्सेप्ट में नहीं है।

वैक्सीन (vaccine) का जनक या आविष्कारक एडवर्ड जेनर को माना जाता है लेकिन ये सही नहीं है। वैक्सीनेशन अथवा टीकाकरण की जो खोज भारत में हुई थी उसके प्रमाण प्रसिद्ध एवं प्रामाणिक इतिहासकार धर्मपाल जी ने अपनी पुस्तक ‘भारत में विज्ञान और तंत्रज्ञान’ अध्याय 8 में लिखें हैं। उससे भी पहले आयुर्वेद के रसायन प्रयोग में से भी कुछ प्रयोग वैक्सीनेशन के जैसे ही हैं। आधुनिक रसिकरण की प्रक्रिया एडवर्ड जेनर से शुरू हुई उसके बाद लुई पास्चर ने भी इसके ऊपर कार्य किया । धर्मपाल जी की पुस्तक में सोलहवीं और सत्रहवीं शताब्दी में भारत में प्रतिविष चिकित्सा का वर्णन है जो वैक्सीनेशन की तरह थी। प्रतिविष (anti poison) उसी व्यक्ति को दिया जाना चाहिए जिससे शरीर में विष गया हो। विष आने की संभावना के कारण विष आने से पहले प्रतिविष देना हानिकारक हो सकता है। कुछ वैक्सीन ऐसी हैं जो प्रतिविष जैसी ही हैं, क्योंकि जिस बीमारी से बचाने के लिए वो दी जाती हैं, उसी बीमारी के सुषुप्त विषाणु (inactive virus) भी शरीर में प्रवेश कराए जाते हैं। जैसे चेचक (small pox) की जो वैक्सीन अठारहवीं शताब्दी में इंग्लैंड में दी गई थी उससे 6 करोड़ लोग मरे थे, ऐसा प्रसिद्ध चिकित्सक डॉ मनु जपी ने बताया है। खसरा (measles), गलसुआ (mums) के लिए दिए जाने वाली वैक्सीन इसी तरह का प्रतिविष हैं।

प्रतिरोधक शक्ति व औषधियों की प्रतिक्रिया

वैज्ञानिकों के अनुसार हमारा शरीर अनेक जीवंत कोषों का समूह है। उन कोषों में प्रतिरोधक शक्ति होती है। ये प्रतिरोधक शक्ति शरीर के रोगों के विषाणु अथवा विपरीत तत्वों से लड़ती है, निर्जीव परमाणु को बाहर निकालती है या आने नहीं दे दी है तथा शरीर के अनुरूप तत्वों को ग्रहण करती है। जैसे प्राणवायु शरीर के अनुरूप है तो शरीर उसे श्वास उच्छ्वास के द्वारा स्वयं ग्रहण कर लेता है और तम्बाकू जैसे शरीर के प्रतिकूल है तो तम्बाकू को खाया जाए तो उसे थूकना पड़ता है। जैसे जब छींक आती है तो कोई प्रतिकूल तत्व आपकी श्वास के साथ अंदर जा रहा होता है और शरीर उसे छींक द्वारा बाहर निकाल फेंकता है।

औषधियों से हमारे शरीर में जो प्रतिक्रिया होती है, जो प्रभाव होता है, वह प्रभाव औषधि के गुण (properties) के आधार पर होता है। वैक्सीनेशन में जो जो सामग्री उपयोग होती है, वह 80- 90 प्रतिशत पशुवध ग्रह (slaughter house) से आता है| वो विभिन्न प्राणियों के माँस, मज्जा, हड्डी, लार (saliva) या कोषों से बना होता है। यह प्रमाण भारत की पूर्व बाल एवं महिला विकास मंत्री श्रीमति मेनका गांधी द्वारा लेख और सेमिनार में प्रस्तुत भी किया गया है। मनुष्यों के शरीर में दूसरे मनुष्य के खून, अवयव (components) इत्यादि स्वीकार करने में बहुत सी सावधानी रखनी पड़ती है, इसी तरह अन्य प्राणियों के, जैसे पशुओं के अवयव, लार (saliva) इत्यादि का उपयोग सार्वजनिक नहीं हो सकता है। वैक्सीन में यह प्रयोग सार्वजनिक होता है।

आयुर्वेदिक वैक्सीनेशन या रसिकरण

आयुर्वेद का रसायन प्रयोग एक ऐसा वैक्सीनेशन है जिसकी औषधियों में प्राणी या हानिकारक द्रव्य नहीं है। दूसरा, ये कोई रोगों के वायरस नहीं है जिससे वो रोग होने की संभावना हो या बढ़े। अपितु पंचमहाभूत के सिद्धांत के आधार पर, समानेवृद्धि के नियम के आधार पर पंचमहाभूत के ही प्राकृतिक प्रक्रिया से बने हुए औषध, पांच महाभौतिक शरीर की प्रतिरोधक शक्ति को प्राकृतिक रीति से बढ़ाते हैं। यह शक्ति बढ़ने पर अनेक संक्रामक रोग पास नहीं आ सकते, जैसे अधिकतर वायरल इन्फेक्शन्स (viral infections)।

आयुर्वेद के ग्रंथों में देशज, कालज और संसर्गज रोगों से बचने के लिए विषाणु की जगह पर निर्दोष रसायन प्रयोग बताए गए हैं, जिसमें वायरस या विषाणु के न होने से किसी प्रतिक्रिया की संभावना नहीं रहती। वो virus की तरह बढ़ते नहीं है अपितु पच जाते हैं और शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाकर वही कार्य करते हैं जो तब रोगों के प्रतिक्रिया में दिये हुए वैक्सीन करते हैं लेकिन आयुर्वेद के रसायन प्रयोग निर्दोष हैं। बहुत बार प्रयोग किया जा सकता है। देश, काल के अनुरूप बढ़ाया या घटाया जा सकता है। भविष्य में उससे रोग आने की संभावना नहीं है इसलिए आयुर्वेद वैक्सीनशन ही उत्तम विकल्प है। उसके लिए बालकों के लिए सुवर्णप्राशन नामक अद्भुत रसायन है, जो बालकों को जन्म से लेकर 12 साल तक नियमित रूप से दिया जाता है और उसका बहुत ही अनुकूल प्रभाव बच्चों के शरीर,प्रतिरोधक शक्ति, मन, बुद्धि एवं चेतना शक्ति पर दिखाई देता है।

” मंत्रौषधि – सुवर्ण – प्राशन “
आयुर्वेद के प्राचीनतम ग्रन्थ ” कश्यप संहिता ” में सुवर्णप्राशन का महत्व एवं उनकी निर्माण विधि बताई गई है | हमारी संस्था द्वारा ” कश्यप संहिता ” में वर्णित विधि से ही पुष्य नक्षत्र के शुभ योग पर वैदिक मंत्रों के उच्चारण करते हुए, सात्विक एवं पवित्र वातावरण में यह प्रश्न बनाया जाता है |


सुवर्णप्राशन :- आयुर्वेदिक टीकाकरण

आधुनिक टीकाकरण के विषय में तो कई जानकारियां, अनेक प्रचार – माध्यमों के द्वारा हम प्राप्त करते ही है, परंतु सुवर्ण–प्राशन, जो हमारे पुर्वजोने विकसित की हुई एक ऐसी टीकाकरण की व्यवस्था है की यदि प्रत्येक बालक को प्रतिमाह पुष्य नक्षत्र के शुभ योग पर इसे दिया जाये तो बहोतसे रोगोके प्रभाव से शिशु को – बालक को सुरक्षित रखा जा सकता है |

सुवर्णप्राशन के प्रमुख लाभ

१. बालकोंकी बुद्धि, मेधा, रोग – प्रतिकारक शक्ति बढाती है

२. वाइरल इन्फेक्शन से सुरक्षा मिलती है

३. बालकोंका चिड-चिडापन, अनिंद्रा आदि दूर होते है

Pushya Nakshatra Dates 2020 Bharat

Saturday, January 11, 2020, 1:29 PM Till Sunday, January 12, 2020, 11:47 AM
Friday, February 7, 2020, 11:58 PM Till Saturday, February 8, 2020, 10:01 PM
Friday, March 6, 2020, 10:35 AM Till Saturday, March 7, 2020, 8:59 AM
Thursday, April 2, 2020, 7:29 PM Till Friday, April 3, 2020, Pushya Until 6:38 PM
Thursday, April 30, 2020, 2:03 AM Till Friday, May 1, 2020, Pushya Until 1:53 AM
Wednesday, May 27, 2020, 7:27 AM Till Thursday, May 28, 2020, Pushya Until 7:25 AM
Tuesday, June 23, 2020, 1:32 PM Till Wednesday, June 24, 2020, Pushya Until 1:07 PM
Monday, July 20, 2020, 9:21 PM Till Tuesday, July 21, 2020, Pushya Until 8:30 PM
Monday, August 17, 2020, 6:43 AM Till Tuesday, August 18, 2020, Until 3:59 AM
Sunday, September 13, 2020, 4:31 PM Till Monday, September 14, 2020, Pushya Until 3:49 PM
Sunday, October 11, 2020, 1:18 AM Till Monday, October 12, 2020, Pushya Until 1:17 AM
Saturday, November 7, 2020, 8:06 AM Till Sunday, November 8, 2020, Pushya Until 8:46 AM
Friday, December 4, 2020, 1:37 PM Till Saturday, December 5, 2020, Pushya Until 2:26 PM
Thursday, December 31, 2020, 7:47 PM Till Friday, January 1, 2021, Pushya Until 8:12 PM